इसलिए टोपी में दिखा करते रहे थे अर्जुन कपूर!

अर्जुन कपूर की पिछली फिल्म 'नमस्ते इंग्लैंड' बॉक्स ऑफिस पर भले न चली हो, मगर अपनी आगामी फिल्म पानीपत से उनकी आशाएं कम नहीं हैं। इस मुलाकात में वह अपने लुक्स पर बनने वाले मीम्स, फिल्म, किरदार, नाकामी, अपनी मां और बहनों के बारे में बात कर रहे हैं: पानीपत के सदाशिव राव भाऊ के किरदार के लिए सिर मुंडवाने में कहीं कोई हिचक थी? (हंसते हुए) मैंने आशु सर (निर्देशक आशुतोष गोवारीकर) से पूछा था कि क्या मैं गंजा होकर अच्छा लगूंगा? उन्होंने कहा, 'मैं कन्विंस्ड हूं, तुझे आश्वस्त करने के लिए एक लुक टेस्ट रखते हैं।' जाहिर सी बात है कि पेशवा तो चोटी के साथ का ही लुक रखते हैं। उन्होंने मेरा लुक टेस्ट करवाया और मुझे बताया कि मेरे सिर का शेप सही लग रहा है। उनका कहना था, 'तू पेशवा लग रहा है। पेशवा गंजे होने के साथ लंबे-चौड़े भी होते थे और तेरा बॉडी स्ट्रक्चर पेशवा की तरह ही है। मुझे लगा, जब निर्देशक इतना आश्वस्त है, तो मुझे यकीन करना ही होगा। बाल मुंडवाते हुए मुझे झिझक से ज्यादा चिंता थी कि मैं कैसा लगूंगा। मुझे 6-8 महीने टोपी पहनकर घूमना पड़ा था और वो मैंने मैनेज कर लिया। अब जब मैंने खुद को बड़े परदे पर देखा, तो लगा कि मेरा बाल मुंडवाना सही साबित हुआ। मगर आपके पेशवा सदाशिव राव भाऊ के लुक पर जो मीम्स बन रहे हैं, उसके बारे में क्या कहेंगे? सच कहूं, तो मैं हर चीज पर स्माइल करता हूं। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी बड़ी-बड़ी चीजें देखी हैं कि मैं इनको हंसी-मजाक में टाल देता हूं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि जो भी मस्ती-मजाक करना चाहे, उन्हें यह सोचना होगा कि यह वास्तविक लोगों की कहानी है। ये लोग हमारे देश के लिए शहीद हुए थे। आप शहीद भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस के बारे में कभी मीम्स नहीं बनाओगे। आप उनकी पगड़ी का मजाक नहीं उड़ाओगे, क्योंकि वह सम्मान का प्रतीक हैं। आप ये भूल जाओ कि दो साल पहले इसी लुक पर कोई फिल्म (बाजीराव मस्तानी) आई थी, जो पेशवाओं और मराठाओं पर बनी थी। आपके दिमाग में हंसी-मजाक जरूर होगा, मगर आप उनका अपमान नहीं कर सकते, जिन्होंने आपके देश के लिए जान दी थी। हम सब यंग हैं, एक-दूसरे की टांग खींचते हैं। मैं खुद रोस्ट कर चुका हूं, मगर एक हद पर आपको सोचना पड़ता है कि अपने मजाक से आप किसी को ठेस तो नहीं पहुंचा रहे। आप अर्जुन कपूर को ट्रोल नहीं कर रहे बल्कि इतिहास के उन जांबाजों पर मीम्स बना रहे हैं, जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं रहे। मगर आप हैं कि सोशल मीडिया पर लगे पड़े हैं। आपको नहीं लगता कि ऐतिहासिक किरदारों का दौर चल पड़ा है। आपकी फिल्म पानीपत के आस-पास ही तानाजी भी रिलीज हो रही है। इससे पहले बाजीराव मस्तानी, मणिकर्णिका, पद्मावती, मोहनजोदारो जैसी कई फिल्में रिलीज होती रही हैं। पहले तो फिल्मकार ऐतिहासिक विषयों को छूने से डरते थे। बिलकुल। उन्हें लगता था कि इतिहास की फिल्म होने के नाते बजट्स भव्य होंगे। एक खास लुक के लिए ऐक्टर को बांधे भी रखना होता है। उनके सामने पहले ये चुनौती भी होती थी कि कौन-सा ऐक्टर एक साल तक बाल निकाल कर गंजा होने को तैयार होगा। असल में पहले इतना अनुशासन भी नहीं था। आज ऐतिहासिक फिल्मों के नजरिए से स्पेशल इफेक्ट्स और वीएफएक्स ने भी काफी तरक्की कर ली है। अब मैंने पिछले साल बाल मुंडवाए थे और मुझे तकरीबन एक साल हो गया है गंजा हुए। और फिर सच कहूं, तो इतिहास आज ज्यादा जरूरी भी हो गया है। हमें आज के युवाओं को याद दिलाने की जरूरत है कि कैसे इस देश के जांबाजों ने अपने बलिदान से समय-समय पर देश की रक्षा की है। आप इसे वॉर फिल्म की तरह देखें, मगर मैं कहूंगा कि ये एक देशभक्ति से परिपूर्ण फिल्म है। ये जो लोग हैं, इन्होंने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी जंग लड़ी थी, ताकि आक्रमणकारी हमारे देश में घुसपैठ न कर पाएं। आज भी इतिहास इसलिए दोहराना जरूरी है कि आज भी लोगों की निगाहें इंडिया पर लगीं रहती हैं। आपने हाल ही में अपनी मॉम के नाम का एक खत सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। आपकी स्वर्गवासी मां आपके लिए किस तरह के सपॉर्ट सिस्टम का काम करती हैं? उस दिन नई फिल्म की शुरुआत हो रही थी। एक फिल्म खत्म होने जा रही थी। बहुत याद आ रही थी मॉम की। सोचा घर जाकर बताऊं। पहले नई फिल्म का खूब ढिंढोरा पीटता था, मगर एक पॉइंट के बाद आप घर जाकर ही बात करना चाहते हैं। घर आने पर मॉम के बगैर अधूरापन लगता है। मैं उस अधूरेपन को भर नहीं पाता। किसी ने पूछा कि आप अकेले हो इसलिए अधूरापन लगता है। मैंने कहा, 'नहीं मेरे साथ कई लोग हैं, मगर मॉम की जगह कौन ले सकता है। मेरी मां ऐसी थीं कि आस-पास होंगी भी न, तो यही चाहेंगी कि मैं अपने कदम खुद आगे बढ़ाऊं। वह मेरे साथ हैं। कुछ बुरा नहीं होने देंगी। मुझ जैसे कितने लोग होंगे, जिन्होंने अपनों को खोया है तो वे कहीं न कहीं इस बात पर अपनी निगेटिविटी को हटाकर मुझसे कनेक्ट करेंगे। और नाकामी को कैसे हैंडल करते हैं? आपकी पिछली फिल्म नमस्ते लंदन बुरी तरह से फ्लॉप रही। बहुत ईमानदारी से कहूंगा कि मैंने जिंदगी में जितना कुछ देखा है, उसमें एक अच्छा फ्राइडे और एक बुरा फ्राइडे कुछ मायने नहीं रखता, तो मुझे कोई हिला नहीं पाएगा। फिल्म फ्लॉप होती है, तो अफसोस होता है, बुरा लगता है, दिल टूटता है, मगर मैं हिलनेवालों में से नहीं हूं। मुझे फर्क पड़ता है, इमोशनल हूं, मगर इतनी ताकत किसी में नहीं कि कोई मुझे तोड़ पाए। मैं अपनी मां का बेटा हूं। अब आप अपनी बहनों (अंशुला, जाह्नवी,खुशी) के प्रति ज्यादा प्रोटेक्टिव और जिम्मेदार हो गए हैं। मैं शुरू से जिम्मेदार रहा हूं। मेरा व्यक्तित्व भी वैसा ही है। मैं सोचता भी ज्यादा हूं। आज भी मेरी टेंशन मेरी बहनों को लेकर ही चलती है। अब जैसे आज अंशुला की तबीयत ठीक नहीं है, तो मेरा सारा जेहन उसकी तरफ लगा हुआ है। अब सोने पर सुहागा की तरह मुझे जाह्नवी और खुशी का ख्याल भी रखना होता है। एक अरसे से आपकी प्रफेशनल लाइफ के बजाय पर्सनल लाइफ ज्यादा चर्चा में रही है? मेरे काम के बारे में भी बात होती रही है। उसका भी समय आया था और आगे भी आएगा। अब मेरी पर्सनल लाइफ के बारे में बात करते लोगों का मैं मुंह बंद नहीं कर सकता। मैं उन बातों से उत्तेजित नहीं होता बल्कि रिलैक्स रहता हूं। जब जिस चीज का वक्त आएगा, वह चीज हो जाएगी।


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