कृति सेनन ने बताया, किस बात से तिलमिला जाती हैं

कृति सेनन को फिल्मेकर्स लकी मस्कट मानने लगे हैं। बॉक्स ऑफिस पर उनकी अब तक ज्यादातर फिल्में सफल रही हैं। इन दिनों वे चर्चा में हैं अपनी फिल्म पानीपत को लेकर, जिसमें वह पार्वती बाई का किरदार निभा रही हैं। यहां वह कई महिलावादी मुद्दों पर बात करती हैं। से रेखा खान ने खास बातचीत की। आप पानीपत में पार्वती बाई की भूमिका कर रही हैं। इतिहास में रानी लक्ष्मी बाई, रानी जोधा बाई और पद्मावती जैसे गिनी-चुनी ऐतिहासिक महिला किरदार हैं, जो अपनी शौर्यगाथा के लिए जानी जाती हैं, जबकि पुरुष शूरवीरों की भरमार है। मुझे लगता है कि इतिहास में कई महिला किरदार भी होंगे, मगर हमें ज्यादा किरदारों के बारे में पता नहीं है। जैसे झांसी की रानी के बारे में हम सब जानते हैं, बच्चा-बच्चा जानता है कि खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। अब मैं पार्वती बाई का कैरेक्टर निभा रही हूं, मगर इससे पहले तो मुझे इसके बारे में जानकारी ही नहीं थी, मगर इस फिल्म के बाद सभी जान जाएंगे। मुझे खुद काशी बाई, पद्मावती और मस्तानी के बारे में इतना पता नहीं था। मुझे विश्वास है कि ऐसे किरदार जरूर होंगे। अब जैसे हमारी फिल्म में जीनत मैम (जीनत अमान) सकीना बेगम का किरदार निभा रही हैं। यह भी अपने आप में बहुत ही अहम किरदार है, तो मेरे कहने का मतलब यह है कि कई महत्वपूर्ण महिला किरदार भी हैं, इतिहास में। हमें उन्हें ढूंढकर परदे पर लाना है। आप लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ती जा रही हैं। आपने खुद पर सबसे ज्यादा गर्व कब महसूस किया? मैं उस वक्त बहुत गर्व महसूस करती हूं, जब मैं लड़कियों को अपने बलबूते पर नाम बनाने के लिए इंस्पायर कर पाऊं या जब वे मुझे देखकर कहती हैं कि वे भी मेरी तरह अपने सपनों को साकार कर सकती हैं। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ऐक्ट्रेस बनूंगी। मैं एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूं। मेरी मॉम प्रफेसर हैं, डैड सीए हैं। मैं खुद इंजिनियरिंग कर रही थी। अब जब मैंने बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड और गॉडफादर के अपना मुकाम बना लिया, तो कई लड़कियां मुझे सोशल मीडिया पर आदर्श मानकर मेरे नक्शेकदम पर चलना चाहती हैं। उस वक्त मुझे बहुत गर्व होता है। बॉक्स ऑफिस पर कई हिट फिल्में देने के बाद क्या ऐक्ट्रेस के रूप में आप उस जगह पहुंच पाई हैं, जहां आप अपनी भूमिकाओं को अपनी मर्जी से चुन सकें और अपनी मर्जी से फीस की मांग कर सकें? हां, कहीं न कहीं यह ताकत मुझे मिली है। जब मैंने 'बरेली की बर्फी' की थी, तो उसके बाद अभिनेत्री के रूप में मेरी पहचान पुख्ता हुई। तब तक लोग मुझे हीरोइन के रूप में देख रहे थे। मैं अपने ऐक्टिंग को सहज बनाए रखने की कोशिश करती हूं। मुझे अपना काम बहुत पसंद है। मैं यहां वर्कशॉप या ऐक्टिंग का कोर्स करके नहीं आई थी, तो मेरे लिए बहुत जरूरी था कि लोग ऐक्ट्रेस के रूप में मुझे मान्यता दें। यह सच है कि अब मेरे पास ज्यादा ऑफर आते हैं और फिल्म को चुनने का मेरा दायरा भी बढ़ गया है। अब मेरे पास पहले से ज्यादा ऑप्शन हैं। 'लुका छुपी' की बॉक्स ऑफिस सफलता ने मुझे और मजबूती दी। जहां तक प्राइस मनी की बात है, तो जब आप अपनी कीमत का अहसास करने लगते हैं, तब लोग भी आपको उस योग्य समझने लगते हैं। मैं फिल्में सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं करती, मगर आपकी फीस आपकी काबिलियत का परिचय देती है। मुझे लगता है कि किसी भी अभिनेत्री को अपनी कीमत समझकर फीस की मांग करनी चाहिए कि हां, मैं यह डिजर्व करती हूं। लड़की होने के नाते आपको खुद पर या आस-पास बुरा कब फील होता है? कई मुद्दे हैं जब लड़की होने के नाते मैं आहत हो जाती हूं। मैं पूरी तरह से फेमिनिस्ट हूं और लड़कियों के साथ होनेवाले अत्याचार और भेदभाव से तिलमिला जाती हूं। मेरी ये विचारधारा मुझे अपनी मां से मिली है। जब भी मेरी मां लड़का-लड़की के बीच भेदभाव होते देखतीं, तो वे सवाल जरूर करतीं। हमारे यहां कई रीति-रिवाज हैं, जिन पर मुझे आपत्ति है। लड़के अपने माता-पिता के पैर छूते हैं, लड़कियां अपने माता-पिता के पैर नहीं छूती, मगर जब वे ससुराल जाती हैं, तो अपने सास-ससुर के पैर जरूर छूती हैं, तो अगर पैर छूना सम्मान का प्रतीक है, तो लड़की को अपने माता-पिता का सम्मान भी करना चाहिए। कई ऐसे रिवाज है, जहां आप लड़कों के प्रति पक्षपाती नजर आते हैं। जब भी कोई कहता है कि ये काम लड़कियों का नहीं है, तो मुझे बहुत खटकता है। मैं उन बातों पर लड़ सकती हूं। वैसे मेरे घर में मैंने अभी असमानता नहीं देखी। हम दो बहनें हैं और मेरी मां का रवैया था कि जो फ्रीडम मैं अपने बेटे को देती, वही अपनी बेटियों को दूंगी। आपको किन चीजों पर काफी कोफ्त होती है? मेरे परिवार ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया, मगर मेरे रिश्तेदारों में एक धारणा बनी हुई थी कि फिल्म इंडस्ट्री में चले जाओ, तो शादी नहीं होती। तब मुझे लगा कि मेरी लाइफ का एजेंडा शादी करना नहीं है। मैं विवाह संस्था में गहरा विश्वास रखती हूं। मैं शादी करना चाहती हूं, मगर शादी मेरा गोल नहीं है। कई बार जब मैं ब्लाइंड आर्टिकल्स पढ़ती हूं, तो गुस्से से भर जाती हूं। आपको मेहनत से कोई चीज मिली होती है और कुछ लोग उस चीज को नजरअंदाज करके आपके बारे में तोड़-मरोड़ कर लिखते हैं कि ये ओहदा या सफलता उसे पहचान या किसी फेवर के कारण मिली है। आपको लड़कियों को लेकर ऐसा क्यों लगता है कि उनको ये मुकाम उनकी योग्यता के बल पर नहीं मिला होगा? खास तौर पर लड़कियों को जज करना मुझे बहुत गुस्सा दिलाता है। हमारे यहां हीरो को कोई जज नहीं करता, लेकिन हीरोइन को सब करते हैं। क्या आपको इंडस्ट्री में हीरो-हीरोइन के भेद का शिकार होना पड़ा है? मुझे हाल ही में एक फिल्म का ऑफर मिला। मैं उसका नाम नहीं लेना चाहूंगी, क्योंकि अब मैं वो फिल्म नहीं कर रही हूं। बहुत अच्छी स्क्रिप्ट थी, उस फिल्म की और मुझे उस फिल्म का किरदार बहुत पसंद था, मगर हीरोइन का रोल 60 पर्सेंट था और हीरो का 40 पर्सेंट। नायिका का रोल हल्का-सा स्ट्रॉन्ग था। उस स्क्रिप्ट में मेरे साथ कोई भी ए लिस्टर हीरो काम करने को राजी नहीं हुआ। मैं सोचती हूं कि वो दिन कब आएगा, जब हीरोइनों को लेकर लोगों की यह सोच बदलेगी और बड़े-बड़े मेल ऐक्टर्स हमें सपोर्ट करेंगे। मेल ओरिएंटेड फिल्मों में आपको बड़ी-बड़ी एक्ट्रेसेज दिखेंगी। मगर वहीं फीमेल ओरिएंटेड फिल्म में आपको हीरो के रूप में वैसा बड़ा नाम नहीं दिखेगा। मुझे लगता है कि इस अंतर की इस खाई को हमें पाटना होगा।


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