'यह सरकार अपनी असफलताएं नहीं मानती'

देश के एक ऐसे बेखौफ फिल्मकार के रूप में जाने जाते हैं, जो न अपनी फिल्मों में नए प्रयोग करने से डरते हैं, न सरकार के खिलाफ बेबाकी से आवाज उठाने से। अनुराग इन दिनों और का खुलकर विरोध कर रहे हैं। पेश है उनसे यह खास बातचीत: इन दिनों देश का माहौल भी कुछ खास खुशनुमा नहीं है। सीएए और एनआरसी को लेकर जिस तरह स्टूडेंट्स सड़क पर उतरे हैं, आप कितने बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं?स्टूडेंट्स क्यों न बाहर आएं, क्योंकि फ्यूचर तो उनका है न। हम लोग तो अपनी जिंदगी जी चुके। हमारा तो जो होना था, वो हो चुका, पर जिसका फ्यूचर है, वह तो लड़ेगा न। हर कोई अपने फ्यूचर के लिए लड़ता है। कोई अपने पास्ट के लिए नहीं लड़ता, लेकिन इन लोगों ने लड़ाई ही पूरी पास्ट की बना दी है। मुझे नहीं मालूम कि ये कहां तक जाएगा। यह तो देखना होगा। यह लोगों पर भी निर्भर करता है कि वे लगातार अपनी बात कहते रहें, तभी चीजें बदलेंगी। अभी तो एक हताशा है, क्योंकि वादे बहुत किए और जो मिला वह कुछ और ही है। अभी स्थिति मूल रूप में यह है कि लोगों को रोजगार चाहिए और सही दाम पर चीजें चाहिए, जबकि हम लोग यहां हिंदू-मुस्लिम में फंसे हुए हैं। हिंदू मुस्लिम से थोड़ा हट जाएं और जरा रोजमर्रा की बातों पर आ जाएं, तो कुछ बात बने। आप लोग यानी बुद्धिजीवी वर्ग काफी समय से सरकार और उसकी नीतियों का विरोध करता रहा है। लेकिन जनता उन्हें जिताती रही है। पब्लिक आपकी बातों से क्यों कंवीन्स नहीं होती है?देखिए, सिंपल सी बात है कि हमारे देश में पढ़े-लिखे लोग कम हैं। जिनको पढ़ने या बेहतर जिंदगी की सुविधा नहीं मिली है, वे लोग ज्यादा हैं और वे ही लोग वोट करने ज्यादा आते हैं। पढ़े-लिखे लोग वोट करने कम जाते हैं, तो सरकार का काम तो उनसे ज्यादा चलता है न, जो वोट करते हैं, जिन्हें ये सब समझने की सुविधा नहीं मिली है। इसलिए हम पढ़े-लिखे लोग जो चाहे बोल लें, लेकिन जब तक हम सबको नहीं पढ़ाएंगे, फायदा नहीं होगा। आज हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता शिक्षा पर होनी चाहिए, लेकिन ऐसे में शिक्षा का बजट काट दिया जाता है, वह तो गलत है न! ट्विटर के बिना जिंदगी कैसी चल रही थी? कोई खालीपन था?ट्विटर के बिना मैंने ज्यादा काम किया। मैंने एक फिल्म बना ली और भी कई दूसरे काम किए। ज्यादा लिखा, ज्यादा शांति में रहा। ट्विटर पर आने के बाद मेरी जिंदगी वापस उखड़ गई है। सोशल मीडिया के बिना लाइफ बहुत शांत थी और बहुत अच्छी थी। (हंसते हैं) हमारे पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब ने भारत के 2020 तक सुपरपावर बनने की कल्पना की थी। 2020 आने ही वाला है, आप देश को कहां देखते हैं?ये तो सारे जुमले हैं। ये सुपरपावर सुनने में बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन उसके लिए बहुत कुछ करना पड़ता है, सिर्फ भाषण देने से आप सुपरपावर नहीं बन सकते हैं। उसके लिए जमीनी स्तर पर काम करना पड़ता है, लेकिन यह सरकार ग्राउंड वर्क करने के बजाय डिनायल (इनकार) मोड में रहती है। अपनी सारी असफलताओं को मानने से इनकार कर देती है और जब लोग उन असफलताओं के बारे में ज्यादा बात करने लगते हैं, तो लोगों को वहां से डिस्ट्रैक्ट करती है। उन्होंने आज तक एक बार भी यही नहीं माना कि नोटबंदी फेल हो गई। यही नहीं माना कि महंगाई है, आप बोलो कि महंगाई है, तो वे मानेंगे नहीं। वे बोलेंगे कि अरे, हम तो बिना प्याज के खाना खाते हैं। इस लगातार इनकार और असफलताओं को न मानने से लोग नाराज हैं। आप पहले स्वीकार तो करो कि गलत हो गया, आप जब ये स्वीकार करेंगे, तभी तो सुधार करेंगे, लेकिन आपका ईगो बीच में आ जाता है। आप स्वीकार ही नहीं कर सकते कि गलत हो गया। फिर आप डरते हैं कि अगला इलेक्शन हम हार गए तो! तो फिर आप लोगों को बरगलाने की कोशिश करते हैं। सारी दिक्कत तो वहां पर है। आपके मन में किसी तरह का डर रहता है?देखिए जो सिलेब्रिटी होते हैं न, उनको ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, क्योंकि हमारा चेहरा विजिबल होता है। कोई साधारण आदमी कुछ भी कहकर निकल सकता है, पर हमें अपनी राय के पीछे खड़ा होना पड़ता है। जब हम कुछ बोलते हैं, तो अपने साथ काम करने वाले, अपने परिवारवालों, सबको रिस्क पर डाल रहे होते हैं। इसी वजह से बहुत से लोग बोलने से डरते हैं। मैं इसीलिए एक बार ट्विटर छोड़कर जा चुका था, लेकिन फिर रहा नहीं गया। ऐसा नहीं है कि मेरे अंदर डर नहीं है। डर होता है, लेकिन कई बार आपको लगता है कि अब बोलना बहुत जरूरी हो गया है।


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