पिता की बायॉपिक बनाना चाहते हैं रितेश देशमुख

बॉलिवुड अभिनेता रितेश देशमुख जल्द ही फिल्म 'बागी 3' में के भाई की भूमिका में नजर आएंगे। इन दिनों वह फिल्म के प्रमोशन में जुटे हैं, इसी दौरान हमसे हुई खास बातचीत में रितेश ने 'बागी 3' के अलावा अपने होम प्रॉडक्शन की फिल्मों को लेकर भी बात की। एक सवाल के जवाब पर रितेश ने बताया कि वह अपने दिवंगत पिता बनाना चाहते हैं। कुछ लोगों ने मुझे फिल्म बनाने के लिए स्क्रिप्ट भी लिखकर भेजीरितेश से सवाल था कि आप छत्रपति शिवाजी की बायॉपिक पर काम कर रहे हैं, क्या कभी पिता की बायॉपिक बनाएंगे? जवाब में रितेश ने कहा, 'जी हां, मेरे पिता विलासराव देशमुखजी के जीवन की कहानी सरपंच बनने से मुख्यमंत्री बनने के सफर की कहानी है। पिता की बायॉपिक के लिए कई लोगों ने मुझे कहा है कि उनकी बॉयापिक बननी चाहिए। कुछ लोगों ने तो मुझे फिल्म बनाने के लिए पूरी स्क्रिप्ट तक लिखकर भेजी।' अगर मैं पिता की बॉयापिक बनाऊंगा तो लोग कहेंगे कि सब अच्छा-अच्छा दिखा दियारितेश बताते हैं, 'यह सबजेक्ट आसान नहीं है, यह विषय मेरे दिल के सबसे करीब है, जब सब्जेक्ट इतना नजदीक हो तो आप ऑब्जेक्टिविटी भूल जाते हैं। यह नहीं समझ पाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। अगर मैं अपने पिता की बॉयापिक खुद बनाऊंगा तो लोग कहेंगे कि तुमने तो सब अच्छा-अच्छा दिखा दिया, बाकी सब तो दिखाया नहीं, तो यह विषय मेरे बहुत ज्यादा नजदीक है। किसी और ने पिता की बॉयापिक बनाई तो मैं कहूंगा कि ऐसे तो थे नहीं वह, इस तरह बात नहीं करते थे, ऐसा तो हुआ नहीं था, कहने का मतलब है कि यह डिस्पैरिटी तो चलती रहती है।' दो घंटों में वह दिखाना है, जो चीज लोगों को एंगेज करके रखेरितेश आगे कहते हैं, 'एक बार तो मैंने सोचा था कि चलो पिता कि बॉयापिक बनाई जाए, लेकिन बात नहीं बनीं। देखिए, किसी की जिंदगी पर किताब लिखना आसान है, फिर चाहे वह किताब 600 पन्नों की हो, 350 पेज की हो या फिर 100 पन्नों की हो उससे फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन सिनेमा 2 घंटों का होता है, इन दो घंटों में हमें वही चीजें दिखानी हैं, जो चीज लोगों को एंगेज करके रखे, वरना फिल्म उबाऊ हो जाती है।' पिता की बायॉपिक बनाना कोई अजेंडा नहीं हैअपनी बात समाप्त करते हुए रितेश कहते हैं, 'पिता की बायॉपिक बनाना कोई अजेंडा नहीं है, देखते हैं कुछ अच्छा वर्कआउट हुआ तो जरूर बनाएंगे। वैसे तो बहुत सारी बायॉग्रफी उनकी स्पीच पर लिखी गई हैं। जब हमारा पूरा परिवार यानी मेरी मां, दोनों भाई और मैं, पिता को लेकर किसी एक विचार पर एकमत होंगे और यह फाइनल कर लेंगे कि उनकी कहानी दुनिया के सामने आनी चाहिए, तब जरूर हम फिल्म बनाएंगे।' जानें, कौन थे विलासराव देशमुख महाराष्‍ट्र में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के साथ राष्‍ट्रीय राजनीति में भी वह कांग्रेस के सबसे अहम सिपहसलार थे। महाराष्‍ट्र के लातूर में जन्‍मे देशमुख ने पंचायत से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। पहले पंच, फिर सरपंच बने। वह जिला परिषद के सदस्य और लातूर तालुका पंचायत समिति के उपाध्यक्ष भी रहे। विलासराव युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी रहे और अपने कार्यकाल के दौरान युवा कांग्रेस के पंचसूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने की दिशा में भी काम किया। बाद में विलासराव देशमुख ने महाराष्ट्र की राजनीति में कदम रखा और 1980 से 1995 तक लगातार तीन चुनावों में विधानसभा के लिए चुने गए और गृह, ग्रामीण विकास, कृषि, मतस्य, पर्यटन, उद्योग, परिवहन, शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, युवा मामले, खेल सहित अनेक पदों पर विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया। राजनीति में आने के बाद से उन्होंने लातूर का नक्शा ही बदल दिया। 26/11 हमले के बाद देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा1995 में विलासराव देशमुख चुनाव हार गए, लेकिन 1999 के चुनावों में उनकी विधानसभा में फिर से वापसी हुई और वह पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बनें, लेकिन उन्हें बीच में ही मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी और सुशील कुमार शिंदे को उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाया गया। अगले चुनावों में मिली अपार सफलता के बाद उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाया गया। पहली बार विलासराव देशमुख 18 अक्टूबर 1999 से 16 जनवरी 2003 तक मुख्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के दूसरे कार्यकाल के दौरान मुंबई सीरियल ब्लास्ट हुआ, धमाकों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने केंद्रीय राजनीति का रुख किया और राज्यसभा के सदस्य बनें। उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई और उन्होंने भारी उद्योग व सार्वजनिक उद्यम मंत्री, पंचायती राज मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री, विज्ञान और तकनीक मंत्री के साथ ही भू-विज्ञान मंत्री के पद पर काम किया। विलासराव देशमुख मुंबई क्रिकेट एशोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। विलासराव देशमुख मुंबई पर 26/11 हमले के बाद अपने बेटे और फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा के साथ होटल ताज का मुआयना करने पहुंचे। विपक्ष ने उनकी जबरदस्त आलोचना की और आरोप लगाया कि वह अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए रामगोपाल वर्मा को होटल ताज ले गए हैं। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।


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