मां के दिल में बसती थी एआर रहमान की जान, करीमा बेगम की आस्‍था देख बन गए थे मुसलमान

ऑस्कर अवॉर्ड विनर म्यूजिक कंपोजर और सिंगर की मां का 28 दिसंबर को चेन्नई में निधन हो गया है। एआर रहमान अपनी मां के बेहद करीब थे। ऐसे में उनके लिए मां को खोना बहुत बड़ा नुकसान है। एआर रहमान की जान उनकी मां के दिल में बसती थी और वह हर खास मौके पर अपनी मां को याद करते हुए देखे जाते रहे हैं। वहीं, म्यूजिक कंपोजर के मुसलमान बनने के पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। 11 साल की उम्र में दोस्त के बैंड में किया काम एआर रहमान जब नौ साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था। उनके पिता के निधन के बाद घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी तब उनकी मां ने पिता के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स को उधार पर देकर घर चलाती थीं। एआर रहमान की मां को पिता के इक्व‍िपमेंट्स को बेचकर इसके इंटरेस्ट पर घर का खर्च चलाने की सलाह भी दी गई पर उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि उनका बेटा इन सामान की देखभाल करेगा। एआर रहमान महज 11 साल की उम्र में अपने बचपन के दोस्त शिवमणि के साथ 'रहमान बैंड रुट्स' के लिए सिंथेसाइजर बजाने का काम करते थे। चेन्नई के बैंड 'नेमेसिस एवेन्यू' की स्थापना में भी उनका अहम योगदान रहा। वह पियानो, हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे। म्यूजिक कंपोजर पर इस्लाम का हुआ असर एआर रहमान की मां को सूफी संत पीर करीमुल्लाह शाह कादरी पर बहुत भरोसा था। हालांकि, उनकी मां हिंदू धर्म को मानती थीं। एआर रहमान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब 23 साल की उम्र में उनकी बहन की तबीयत बेहद खराब हो गई थी तो वे पूरे परिवार के साथ इस्लामिक धार्मिक स्थल गईं। इसके बाद उनकी बहन स्वस्थ हो गई। इसका म्यूजिक कंपोजर पर इतना असर हुआ कि उन्होंने धर्म बदलकर इस्लाम स्वीकार कर लिया। धर्म परिवर्तन का किसी रिश्ते पर नहीं पड़ा असर एआर रहमान ने धर्म परिवर्तन का जिक्र करते हुए कहा था कि उनके पिता के निधन के 10 साल बाद वह कादरी साहब से फिर मिलने गए थे। वो अस्वस्थ थे और मां ने उनकी देखभाल की थी। वो उन्हें अपनी बेटी मानते थे। कादरी साहब से मिलने के एक साल बाद एआर रहमान अपने परिवार के साथ कोदाम्बक्कम शिफ्ट हो गए थे। उनका परिवार अभी भी वहां रहता है। उनको समझ आ गया था कि एक रास्ते को चुनना ही सही है। सूफिज्म का रास्ता उन्हें और उनकी मां दोनों को बहुत पसंद था। इसलिए उन्होंने सूफी इस्लाम को अपना लिया था। एआर रहमान ने बताया कि धर्म परिवर्तन करने से उनका किसी के साथ रिश्ते पर बुरा असर नहीं पड़ा। उन्होंने बताया कि उनके आस-पास के लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ा। सबसे अहम बात यह थी कि उन्होंने बराबरी और भगवान की अखंडता के बारे में सीखा। हिंदू ज्योतिष ने दिया था मुस्लिम नाम एआर रहमान को अपना असली नाम दिलीप कुमार पसंद नहीं था। उन्होंने नाम बदलने के बारे में बात करते हुए उन्होंने इंटरव्यू में बताया था कि सच्चाई यह है कि उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था। उनकी इमेज पर नाम सूट नहीं करता था। एआर रहमान सूफिज्म अपनाने के पहले बम एक ज्योतिष के पास अपनी बहन की शादी करने को लेकर उसकी कुंडली दिखाने गए थे। उस समय वह अपना नाम बदलना चाहते थे और अपनी नई पहचान बनाना चाहते थे। ज्योतिष ने कहा कि अब्दुल रहमान और अब्दुल रहीम नाम उनके लिए अच्छा रहेगा। उन्हें रहमान नाम पसंद आ गया। हिंदू ज्योतिष ने मुस्लिम नाम दिया था। उनकी मां चाहती थीं कि वह अपने नाम में अल्लाहरक्खा भी जोड़ें। इस तरह वह एआर रहमान बन गए। 'वंदे मातरम' को दूसरा मिला स्थान बता दें कि एआर रहमान के गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी है। वह विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार किए जाते हैं। देश की अजादी के 50वीं सालगिरह पर 1997 में बनाया गया उनका अलबम 'वंदे मातरम' बेहद कामयाब रहा। साल 2002 में जब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने 7000 गानों में से अब तक के 10 सबसे मशहूर गानों को चुनने का सर्वेक्षण कराया तो 'वंदे मातरम' को दूसरा स्थान मिला। सबसे ज्यादा भाषाओं में इस गाने पर प्रस्तुति दिए जाने के कारण इसके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है।


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