रिव्यू: कैसी है सैफ और तब्बू की 'जवानी जानेमन'

नितिन कक्कर के डायरेक्शन में बनी '' समाज में रिश्तों के बदलते पैमानों की कहानी है। आप इसे यूथ सेंट्रिक फिल्म कह सकते हैं। रिश्तों का जो मॉडर्न रूप इस फिल्म में नजर आता है, उसे जस्टिफाइ करने के लिए निर्देशक ने स्वदेशी किरदारों के साथ विदेशी पृष्ठभूमि को चुनने की समझदारी दिखाई है। कहानी: 40 साल का जसविंदर सिंह उर्फ जैज () मूल रूप से कमिटमेंट से दूर भागनेवाला दिलफेंक शख्स है। वह शादी, बाल-बच्चे और उसकी जिम्मेदारी को अपनी आजादी का सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। यही वजह है कि माता-पिता और भाई-भाभी के होने के बावजूद वह अकेला रहता है। ब्रोकर का काम करनेवाले जैज का काफी वक्त क्लब में शराब पीकर नई-नई लड़कियों के साथ रात गुजारने में बीतता है। वह अपनी जिंदगी में हर तरह से मस्त है, मगर तभी उसके जीवन में 21 साल की टिया () नाम की लड़की आती है। दूसरी लड़कियों की तरह वह टिया के साथ भी फ्लर्ट करना चाहता है, मगर उस वक्त उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है, जब उसे पता चलता है कि टिया उसकी बेटी है और वह भी बिना शादी के प्रेग्नेंट है। जिम्मेदारी से भागने के लिए वह टिया से पीछा छुड़ाने की कोशिश करता है, तो क्या एक बार फिर जैज के अतीत का पुनरावर्तन होगा? जिस तरह वह बाप बनने की जिम्मेदारी से भाग आया था, क्या अब अपनी बेटी और उसके होनेवाले बच्चे से मुंह मोड़ लेगा? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। रिव्यू: 'फिल्मिस्तान' और 'मित्रों' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके नितिन कक्कर की कहानी भले आधुनिक है, मगर उसमें नयापन है। किरदारों को स्थापित करने में वक्त जाया किए बगैर वे सीधे कहानी के मुख्य बिंदु पर आ जाते हैं। फर्स्ट हाफ में कहानी तेजी से भागती है, मगर सेकंड हाफ में इंटरवल के बाद कहानी डल हो जाती है। हालांकि नए किरदारों के आने से थोड़ी ताजगी जरूर आती है। फिल्म कई हिस्सों में हंसाने में कामयाब रहती है। क्लाईमैक्स प्रेडिक्टिबल लगता है, मगर शुक्र है कि उसमें मेलोड्रामा नजर नहीं आता। किरदार सही-गलत होने के पचड़े में पड़े बगैर कहानी के प्रवाह में बहते नजर आते हैं। फिल्म में कई संगीतकार हैं, मगर संगीत औसत ही बन पाया है। सैफ अली खान का स्वैग, बॉडी लैंग्वेज, अभिनय, एनर्जी और इमोशन जैज के किरदार को यादगार बनाता है। इसमें कोई शक नहीं कि इस तरह के अरबन चरित्रों में वह परफेक्ट लगते हैं। इस रोल में वह अपने समर्थ अभिनेता होने का परिचय देते हैं। अलाया फर्नीचरवाला की यह पहली फिल्म है, मगर उन्होंने अपनी भूमिका को बहुत ही सहजता और खूबसूरती से जिया है। उनमें एक अच्छी अभिनेत्री की तमाम संभावनाएं हैं। तब्बू अपनी छोटी-सी भूमिका में मनोरंजन करती हैं, मगर उन जैसी सशक्त अभिनेत्री को और ज्यादा स्क्रीन स्पेस मिलना चाहिए था। सैफ की दोस्त रिया के रूप में कुब्रा सेत ने दमदार ऐक्टिंग की है। सहयोगी किरदारों में कुमुद मिश्रा ने अच्छा काम किया है। चंकी पांडे, फरीदा जलाल जैसे कलाकार ठीक-ठाक रहे हैं। क्यों देखें: आधुनिक कहानी के शौकीन और सैफ अली खान के दमदार अभिनय के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।


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