इस वजह से फिल्‍मों से दूर रहीं ईशा देओल, कहा- मुझसे 'उल्‍टा' कहने की किसी में हिम्मत नहीं

ऐक्ट्रेस ईशा देओल (Esha Deol) ने एक लंबे गैप के बाद शॉर्ट फिल्म 'एक दुआ' के साथ स्क्रीन पर वापसी की है। खास बात यह है कि उन्‍होंने फिल्‍म प्रड्यूस भी की है। नवभारत टाइम्‍स से खास बातचीत में उन्होंने फिल्मों से दूरी, अपने कमबैक और प्रड्यूसर बनने की वजह सरीखे कई राज खोले। बातचीत के अंश: आपने एक लंबे अर्से के बाद ऐक्टिंग में वापसी की है। कैमरे से इस दूरी की क्या वजह रही? 'यह दूरी जरूरी थी क्योंकि मेरी शादी हो गई थी, बच्चे हो गए थे। बच्चे छोटे थे और मैं अपनी जिंदगी के हर दौर का पूरा मजा लेना चाहती थी। मेरा मानना है कि हम औरतों को सही समय पर सही चीजें करना जरूरी है। एक औरत के तौर पर मेरे लिए परिवार शुरू करना, उन्हें समय देना भी उतना ही जरूरी है, जितना कि मेरा प्रफेशन है। हर रिश्ते को वह सम्मान, समय और ध्यान मिलना चाहिए, इसलिए मैं घर, परिवार, बच्चों में बिजी थी लेकिन कहते हैं ना कि एक ऐक्टर हमेशा एक ऐक्टर ही रहता है तो अब मुझे लगा कि वापस अपने पहले प्यार यानी काम को समय देना चाहिए। फिर जिस तरह के अच्छे ऑफर मिल रहे थे, मुझे लगा कि उन्हें करना चाहिए।' आपकी फिल्म 'एक दुआ' कन्या भ्रूण हत्या का अहम मुद्दा उठाती है। वूट सिलेक्ट के शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में आई इस फिल्म को आपने प्रड्यूस भी किया है। यह नई जिम्मेदारी उठाने का फैसला क्यों किया? 'यह फिल्म मेरा छोटा सा योगदान है इस बहुत बड़े से मुद्दे को लेकर। यह अभी भी होता है लेकिन ज्यादातर लोग इस विषय पर बात नहीं करते हैं। मैं खुद एक बेटी हूं। मेरी भी दो बेटियां हैं तो लोगों को इस बारे में जागरूक करना जरूरी है कि यह सही नहीं है। मुझे इस फिल्म में ऐक्टिंग करने का ऑफर मिला था। जब यह कहानी सुनाई गई तो मुझे रोना आ गया जबकि मैं ऐसी इंसान हूं जो आसानी से नहीं रोती। फिर भी इस कहानी के आखिर में मैं रो पड़ी। कहानी मेरे दिल को छू गई और मुझे लगा कि मैं इस फिल्म में सिर्फ ऐक्टर के अलावा और कुछ ज्यादा करना चाहती हूं। मैं इस मुद्दे के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहूंगी तो मुझे लगा कि अगर मैं इसे प्रड्यूस करूंगी तो इसे उस तरह से दिखा पाऊंगी, जैसा मैं चाहती हूं। मैंने सोचा भी था कि जब भी मैं कुछ प्रड्यूस करूंगी, वह कुछ ऐसा ही मीनिंगफुल होगा तो इस तरह मेरा प्रॉडक्शन हाउस शुरू हुआ।' निजी जिंदगी में कभी आपको लड़की होने के कारण कमतर महसूस कराया गया? 'निजी तौर पर तो मेरे साथ नहीं हुआ क्योंकि बचपन से ही मैं ऐसी थी कि कोई मुझसे ऐसा कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर सकता था। मैंने अपने सारे फैसले खुद लिए, चाहे सही हों या नहीं लेकिन मुझे कैसा इंसान बनना है, मेरे लिए क्या सही है या क्या नहीं, ये सारी चॉइसेस मेरी अपनी थीं। मेरी पर्सनैलिटी ऐसी रही है कि किसी की हिम्मत नहीं थी कि मुझे ऐसा महसूस करा सके लेकिन समाज में आज भी ऐसा होता ही है। हालांकि, अब थोड़ा बदलाव भी आ रहा है। लोग लड़कियों को सम्मान दे रहे हैं जो उन्हें मिलना चाहिए। धीरे-धीरे ऐसा हो रहा है।' कहते हैं कि एक मां सबसे ज्यादा सशक्त होती है। क्या मां बनने के बाद आपने भी ऐसा महसूस किया? 'यह बिलकुल सही है। हम औरतें जितना मल्टीटास्क कर पाती हैं, उतना कोई नहीं कर सकता है। हम घर और बाहर कितनी सारी जिम्मेदारी एकसाथ उठाते हैं। इंडियन क्लासिकल में हम एक डांस करते हैं जिसका नाम है- नारी शक्ति। उसमें हम बहुत खूबसूरती से दिखाते हैं कि नारी अलग-अलग रूपों में कैसे एक साथ मल्टीटास्क करती है। वह चाहे हाउसवाइफ है, एक मां है या प्रफेशनली जॉब करती है और यह अभी से नहीं, पहले जमाने से ही ऐसा है। मेरी मां खुद 80 के दशक में हमारी देखरेख के साथ काम किया करती थीं।' आने वाले दिनों में क्‍या आप और भी प्रॉजेक्ट में नजर आएंगी? साथ ही बतौर प्रड्यूसर क्या प्लान है? 'अभी तो वेब सीरीज 'रुद्र' शुरू कर रही हूं। बहुत अच्छी कहानी है जिसके लिए मैं बहुत एक्साइटेड हूं। कुछ और प्रॉजेक्ट हैं लेकिन वे जब अनाउंस होंगे, उसके बाद बात करेंगे। प्रॉडक्शन का काम भी करती रहूंगी पर मैं अच्छा कॉन्टेंट बनाना चाहती हूं। ऐसी चीजें प्रड्यूस करना चाहती हूं जो लोगों में सकारात्मक बदलाव लाए, जो उन्हें इंस्पायर करे।'


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