बर्थडे: फिल्में और दादासाहेब फाल्के, जानें सब

भारतीय सिनेमा के जनक माने जाने वाले दादासाहेब फाल्के का आज जन्मदिन है। 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र में जन्में धुंडिराज गोविंद फाल्के बाद में दादासाहेब फाल्के के रूप में फेमस हुए। 1913 में दादासाहेब ने राजा हरिश्चचंद्र नाम से पहली फीचर फिल्म बनाई थी और यही भारत की भी पहली फिल्म थी। दादासाहेब ने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट (बॉम्बे) में दाखिला लिया। बाद में यहां से ड्राइंग में एक साल का कोर्स करने के बाद उन्होंने प्रफेशनल फोटोग्राफर बनने का निर्णय लिया। 1985 में वह इस बिजनस का मन बनाकर गोधरा चले गए। पर, वहां बिजनस तो नहीं जमा लेकिन प्लेग की बीमारी में पत्नी और बच्चे की मौत हो गई। कुछ दिन जादूगर भी रहे दादासाहेब वापस बड़ौदा आए लेकिन यहां भी फटग्रफी का उनका बिजनेस बढ़ नहीं पाया क्योंकि उस सम लोगों में यह भ्रम फैला था कि कैमरा लोगों का एनर्जी खींच लेता है, जिससे कई बार मृत्यु भी हो जाती है। इसके बाद उन्होंने पेंटिंग और ड्रामा प्रोडक्शन में कदम रखा। यही नहीं उन्होंने जर्मनी के एक जादूगर से जो उन दिनों बड़ोदा आया हुआ था, उससे जादूगरी भी सीखी और कुछ दिन किसी और के नाम से इसके शो भी किए। 1902 में की दोबारा शादी 1902 में फाल्के ने दोबारा शादी की। 1910 तक फाल्के की जिंदगी ऐसी ही चलती रही। अलग-अलग बिजनस शुरू किए लेकिन कोई जमा नहीं। 1911 में उनकी जिंदगी ने तब करवट बदली जब वह अपने बड़े बेटे के साथ एक फिल्म देखने बॉम्बे गए। इसके बाद उन्होंने सोच लिया कि अब वह भी ऐसा ही कुछ करेंगे। लंंदन जाकर सीखा इसी सपने को लेकर वह 1 फरवरी 1912 को लंदन के लिए रवाना हो गए। वह फिल्ममेकिंग का गुर सीखना चाहते थे और इसके लिए वह लंदन चल दिए। लंदन से लौटने के बाद उन्होंने अपने ही बंगले में फिल्म बनाने के लिए एक जगह बनाया और फिर यहां से यात्रा शुरू हुई भारतीय फिल्म उद्योग की। राजा हरिश्चचंद्र पहली फिल्म इसके बाद राजा हरिश्चचंद्र के जरिए उन्होंने पहली फिल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने मोहिनी भस्मासुर और फिर तीसरी फिल्म के रूप में सत्यवान सावित्री बनकर तैयार हुई। इन फिल्मों की सफलता के बाद और बेहतर होने के लिए फाल्के फिर से लंदन गए। बता दें कि लंदन में उनकी फिल्मों की तारीफ हुई और कई सारे ऑफर भी आए। यह ऑफर थे कि आप लंदन में रहकर फिल्म बनाइए और मुनाफा में हिस्सेदारी लीजिए। पर, फाल्के साहेब ने साफ कर दिया कि वह फिल्म सिर्फ और सिर्फ भारत में बनाएंगे। लोन लेकर बनाई फिल्में लंदन से लौटने पर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोई भी पैसा लगाने को तैयार नहीं था। यह स्थिति फाल्के साहेब के लिए मुश्किल थी। हालांकि इसके बावजूद फाल्के साहेब खामोश नहीं बैठे और लोन पर पैसे लेकर फिल्मों को आगे बढ़ाते रहे। रतनजी टाटा आए आगे इसके बाद चीजें बेहतर होती गईं। बाल गंगाधर तिलक, रतनजी टाटा और सेठ मनमोहनदास रामजी ने पैसों का इंतजाम किया और प्रॉफिट के जरिए उन्हें फिल्म कंपनी को प्राइवेट कंपनी बनाकर इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के लिए कहा। इस तरह पैसे जमा होने और प्राइवेट कंपनी बनने के बाद पहली फिल्म बनी श्रीकृष्ण जन्म। फाल्के साहेब की ही 6 साल की बेटी ने कृष्ण का रोल निभाया। इसके बाद कालिया मर्दन के जरिए भी फाल्के साहेब बड़े पर्दे पर छाए। ये थी उनकी अंतिम फिल्म 'गंगा अवतरण' फाल्के साहेब की तरफ से अंतिम फिल्म थी जो कि साउंड फिल्म थी। इसे बनाने में कुल दो साल लगे थे और करीब 2 लाख 50 हजार रुपये खर्च हुए थे। वहीं, फाल्के साहेब की अंतिम साइलेंट फिल्म की बात करें तो वह सेतुबंध थी जो कि 1932 में रिलीज हुई। 1969 में सिनेमा के लिए उनके योगदान के कारण भारत सरकार ने दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत की। सिनेमा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए हर वर्ष यह अवॉर्ड दिया जाता है। सिनेमा के क्षेत्र में यह देश का सबसे बड़ा अवॉर्ड भी है।


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