लता मंगेशकर ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाने से कर दिया था इनकार, जब गाया तो नेहरू की आंख छलक आई

जो किसी भी उपमा से ऊपर, जिनके गले में सरस्वती का वास, जिनके हाथों में उपाधियां भी होतीं गौरवान्वित, जिनके सुरों से आत्मा होती है झंकृत, वो हैं लता मंगेश्कर (Lata Mangeshkar)। आज सुर साम्राज्ञी () का 92वां जन्मदिन है। उनके नाम के साथ मेहनत, जिम्मेदारी, धैर्य, स्ट्रगल, सब कुछ जुड़ा है, यानी वह वो बेशकीमती हीरा हैं जो जीवन की हर परीक्षा में तपकर निकलीं और भारतीय संगीत का पर्याय बन गईं। उन्होंने हजारों अमर गीतों को आवाज दी, चाहे महल फिल्म का आएगा आने वाला हो या बरसात का हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, पाकीजा का मुजरा इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुप्पटा मोरा हो या सत्यम शिवम सुंदरम का भजन, हर गीत की अपनी आत्मा है, जो कालजयी है। पर आज हम बात करेंगे उस एक गीत की, जो ना सिर्फ हमारे रोंगटे खड़े कर देता है, बल्कि उनमें देशभक्ति की उबाल है, जो देश की जनता के साथ-साथ सीमा पर तैनात जवानों में जोश भर देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं अजर-अमर गीत ऐ मेरे वतन के लोगों... की। इसकी रचना और पहली प्रस्तुति की कहानी भी खास है। कवि प्रदीप के पास आया गीत की रचना का प्रस्ताव 1962 में चीन के साथ युद्ध में भारत की हार हुई थी। इससे ना सिर्फ राजनेताओं की, बल्कि पूरे देश का मनोबल गिरा गया था। देश का हौसला बढ़ाने के लिए सबकी निगाहें फिल्म जगत और कवियों की तरफ जम गईं। सरकार की तरफ से फिल्म जगत को कहा गया कि कुछ ऐसा कीजिए जिससे देश में फिर से जोश भर जाए। 'ऐ मेरे वतन के लोगो'.....गीत की रचना करने वाले कवि प्रदीप ने एक इंटरव्यू में उन्होने देशभक्ति के गाने पहले भी लिखे थे, इसलिए यह प्रस्ताव उनके पास आया। इस तरह हुई लता मंगेश्कर को ध्यान में रखकर गीत की रचना कवि प्रदीप ने बताया कि उस दौर में बॉलिवुड में तीन महान गायक थे, मोहम्मद रफी, मुकेश और लता मंगेशकर। उस दौरान मो. रफी ने 'अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं', गीत गाया था। राज कपूर ने मुकेश से 'जिस देश में गंगा बहती है' गीत गवा लिया। ऐसे में बचीं लता मंगेश्कर। कवि प्रदीप का मानना था कि उनकी मीठी व मखमली आवाज में कोई जोशीला गाना फिट नहीं बैठेगा। इसलिए उन्होंने एक भावनात्मक गीत लिखने का विचार किया। इस तरह 'ऐ मेरे वतन के लोगों'... गीत की रचना हुई। ए मेरे वतन के लोगों... गीत को लेकर लता मंगेशकर का खुलासा वहीं, एक इंटरव्यू में लता मंगेश्कर ने कहा कि 1963 में गणतंत्र दिवस के मौके पर जब उन्हें 'ए मेरे वतन के लोगों' गाने का ऑफर मिला तो पहले उन्होंने मना कर दिया था। उनके पास रिहर्सल का वक्त नहीं था। लताजी ने इंटरव्यू में इस गीत के पीछे की पूरी कहानी सुनाई। लता मंगेश्कर ने बताया कि कवि प्रदीप ने इस गाने के अमर बोल लिखे थे। उन्होंने ही उनसे इसे गाने की गुजारिश की थी। व्यस्तता के कारण उनके लिए एक गीत को विशेष अटेंशन देना संभव नहीं था। जब कवि प्रदीप ने उन्हें गाने के लिए मनाया तो वे आशा भोसले के साथ मिलकर इसे गाने को तैयार हो गईं। प्रोग्राम के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले आशा ने वहां जाने से इनकार कर दिया। 'ऐ मेरे वतन के लोगों'... प्रोजेक्ट को ऑर्केस्ट्रेटेड करने वाले म्यूजिक कंपोजर हेमंत कुमार ने भी आशा भोसले को मनाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानीं। ऐसे में लता मंगेश्कर को अकेले ही गाने की तैयारी करनी पड़ी। समय कम था, रास्ते में किया गाने का रियाज ऐ मेरे वतन के लोगों.... गाने की धुन बनाने वाले सी. रामचंद्र भी 4-5 दिन पहले दिल्ली रवाना हो गए थे। ऐसे में लता मंगेश्कर को रियाज के लिए उनका साथ नहीं मिल पाया। रामचंद्र ने उन्हें गाने का एक टेप दे दिया था, जिसे सुनकर वह रियाज करने लगीं। प्रोग्राम के लिए हवाई जहाज से दिल्ली जाने के रास्ते में लता जी रामचंद्र का दिया हुआ टेप सुनती रहीं। लता मंगेश्कर कहती हैं, जब वह रात में दिल्ली पहुंचीं तो उनके पेट में दर्द होने लगा। गाने को लेकर चिंता हुई। फिर वह 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नैशनल स्टेडियम पहुंची और ए मेरे वतन के लोगों...गीत को गाया। पंडित नेहरू की आंख छलक आई लता मंगेश्कर का कहना है कि वह जब गाने खत्म करके स्टेज के पीछे चली गईं, तभी महबूब खान आए और हाथ पकड़कर बोले, चलो नेहरू जी ने बुलाया है।' वह हैरत में थीं कि आखिर पंडित जी उनसे क्यों मिलना चाहते हैं? जब लता जी स्टेज पर पहुंचीं तो पंडितजी समेत सभी लोग लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। पंडित जी ने गाने की तारीफ की और कहां कि उनकी आंखों में पानी आ गया। लता जी को नहीं था भरोसा, गाना होगा इतना मशहूर लताजी के मुताबिक, उन्हें बिल्कुल भी भरोसा नहीं था कि यह गाना इस कदर मशहूर हो जाएगा। ए मेरे वतन के लोगों.. गीत इस कदर देश का पसंद आया कि हर प्रोग्राम में उनसे इस गीत को गाने की फरमाइश होने लगी। लता जी से जुड़ीं कुछ और खास बातें लता जी की जिंदगी सादगी से भरी है। वह हर सुबह एक घंटे संस्कृत का पाठ करती हैं, जिससे कि उनका स्वर बना रहे और उच्चारण साफ हो। कहा जाता है कि एक बार बॉलिवुड ऐक्टर ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार से किसी ने लता मंगेश्कर का परिचय कराया। तो उन्होंने कहा कि यह तो मराठी हैं, हिंदी गाने कैसे गाएंगी? इसके लिए उनको उर्दू सीखने की जरूरत है। इसके बाद लता मंगेश्कर ने अपने गीत के उच्चारण को और भी खूबसूरत करने के लिए उर्दू सीखी और संगीत की दुनिया में ऐसा कर गुजरा कि दुनिया उनको वर्षों याद रखेगी।


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