मुकुल रोहतगी के इन 5 तर्कों से आर्यन खान को मिली जमानत, कोर्ट में नहीं चलीं ASG की दलीलें

क्रूज ड्रग्‍स केस में आख‍िरकार आर्यन खान ( Granted Bail), अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा को 24 दिन बाद जमानत मिल गई है। बॉम्‍बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के बाद ऑपरेटिव ऑर्डर जारी किया और तीनों आरोपियों को जमानत दे दी। हालांकि, तीनों की जेल से रिहाई में अभी वक्‍त लगेगा। शुक्रवार को ऑर्डर कॉपी आने के बाद ही जेल प्रशासन रिहाई की प्रक्रिया पर काम शुरू करेगा। ऐसे में तीनों की रिहाई शुक्रवार शाम तक या फिर शनिवार को हो सकती है। लेकिन इन सब के बीच बॉम्‍बे हाई कोर्ट () में जस्‍टि‍स नितिन साम्‍ब्रे की अदालत में जो कुछ हुआ, उसे भी समझना जरूरी है। यह जानना महत्‍वपूर्ण है कि आख‍िर तीनों आरोपियों, खासकर आर्यन खान के वकील मुकुल रोहतगी () ने कोर्ट में ऐसी कौन सी दलीलें दीं, जिनके आगे NCB की ओर से पेश ASG अनिल सिंह के सभी वर्क धाराशायी हो गए। दलील नंबर - 1 (कॉन्‍शस पजेशन) ASG अनिल सिंह: आर्यन खान ने पहली बार ड्रग्‍स नहीं ली है। कई साल से वह इसका सेवन करते आ रहे हैं। हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि वह ड्रग्‍स उपलब्‍ध करवाते थे। हमने कॉन्‍शस पजेशन का तर्क दिया है। यदि दो व्यक्ति एक साथ हैं और एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के पास मौजूद नशीले पदार्थों के होने और उपयोग के बारे में पता है, तो पहला व्यक्ति भी सचेत रूप से ड्रग्‍स के कब्‍जे की धारा लगेगी। आर्यन और अरबाज बचपन के दोस्त हैं। वो एकसाथ वहां पहुंचे थे। एक ही कमरे में रहने वाले थे। वे तर्क दे रहे हैं कि हमने सेवन के बारे में पता लगाने के लिए मेडिकल टेस्‍ट नहीं किया है। हम यहां सिर्फ ड्रग्‍स की बरामदगी के बारे में बहस कर रहे हैं। आर्यन खान के पास ड्रग्‍स का 'कॉन्‍शस पजेशन' था। मुकुल रोहतगी: आर्यन को नहीं पता था कि अरबाज क्या ले जा रहा था, मान लीजिए कि वह जानते थे .. लेकिन आप हमारे खिलाफ जो सबसे अधिक आरोप लगा सकते हैं वह सामूहिक रूप से कर्मश‍ियल मात्रा का है। इसे साजिश के साथ जोड़ा गया है। अरबाज मर्चेंट आर्यन के दोस्‍त हैं। वह आर्यन के नौकर नहीं हैं। उन पर आर्यन का कोई कंट्रोल नहीं है। ऐसे में उनके पास क्‍या है और क्‍या नहीं, इससे आर्यन का क्‍या लेना-देना। सेवन की बात हम नहीं मानते। चलिए, एक वक्‍त के लिए मान भी लें तो कितनी मात्रा में ड्रग्‍स है 6 ग्राम चरस। यह पर्सनल यूज के लिए है। इसमें अध‍िकतम सजा 1 साल है। यह कोई कर्मश‍ियल मात्रा नहीं है। दलील नंबर - 2 (साजिश और ड्रग्‍स का सेवन) ASG अनिल सिंह: यह मामला ड्रग्‍स के कॉन्‍शस पजेशन और सेवन करने की योजना के बारे में है। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 29 यह नहीं कहती है कि व्यक्ति के पास ड्रग्‍स का कब्जा होना चाहिए। जब हम धारा 28 और 29 को लागू करते हैं तो कर्मश‍ियल मात्रा की बात शुरू हो जाती है। उन्होंने बड़ी मात्रा यानी कर्मश‍ियल मात्रा में ड्रग डील की कोश‍िश की है। एक ही दिन में सभी जगहों से आए सभी 8 लोगों के पास से कई नशीले पदार्थ पाए गए। आप ड्रग्‍स की मात्रा और उनके प्रकार देखें। जब मैं साजिश की बात कहता हूं, तब मैं सभी के पास से बरामद ड्रग्‍स की बात करता हूं। यह एक पार्टी थी। हमारे पास मुनमुन धमेचा, नुपुर और मोहकी के दो और पंचनामे हैं। ड्रग्‍स की जो मात्रा बरामद हुई है वो कर्मश‍ियल है। क्रूज पर कई तरह के ड्रग्‍स थे। क्रूज दो दिनों का था। ऐसा नहीं हो सकता कि यह पर्सनल यूज के लिए हो, क्योंकि मात्रा अध‍िक थी और ड्रग्‍स के प्रकार भी कई। यही कारण है कि हमने धारा 28 और 29 लागू किया है। यह संयोग नहीं हो सकता है कि क्रूज पर 8 लोग, इतनी मात्रा में इतने तरह के ड्रग्‍स के साथ पाए गए। मुकुल रोहतगी: जहाज पर 1300 लोग थे और आर्यन और अरबाज के बीच ही कनेक्शन था। जिस साजिश का आरोप लगाया गया है। यहां कोई साजिश नहीं थी, क्योंकि कोई किसी को नहीं जानता। ना ही इंटेन्‍शन यानी मन का मिलन हुआ है। कोई चर्चा नहीं हुई कि वे मिलेंगे और ड्रग्‍स का सेवन करेंगे, क्‍या यह साजिश है। यदि एक होटल में अलग-अलग कमरों में लोग हैं और वे स्‍मोक करते हैं तो होटल में सभी साजिश में शामिल हैं? इस मामले में इसे साजिश करार देने के लिए कोई सबूत नहीं हैं। आर्यन सिर्फ अरबाज को जानते थे, किसी और को नहीं जानते। दलील नंबर - 3 (संयोग, अनुमान और साजिश) ASG अनिल सिंह: मैं कोर्ट में मधु लिमये का सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिखाता हूं। इन फैसलों में कहा गया है कि न्यायिक आदेश के जरिए रिमांड आदेश पारित किया गया है। मेरा तर्क है कि वह ड्रग्‍स उनके कब्‍जे में पाया गया था। वह ड्रग तस्करों से जुड़ा था। यह कर्मश‍ियल मात्रा थी। इसलिए हमने 28 और 29 की धारा लगाई है। अरेस्‍ट मेमो और रिमांड में सिर्फ 4 घंटे की देरी हुई है। जो बात अरेस्‍ट वारंट में नहीं है, वह रिमांड अप्‍लीकेशन में है। इसलिए यह अवैध गिरफ्तारी नहीं हो सकती। साजिश साबित करना मुश्किल है। साजिशकर्ता ही जानता है कि उन्होंने कैसे साजिश रची, मैं इसे अदालत के संज्ञान में छोड़ दूंगा। मुकुल रोहतगी: यह सच है कि साजिश साबित करना मुश्किल है। यह भी साबित करना मुश्‍क‍िल है कि सब के मन पहले से मिले हुए थे। लेकिन फैक्‍ट्स की अनदेखी नहीं की जा सकती। साजिश के लिए 'मन का मेल' होना चाहिए। जब कोई किसी को जानता ही नहीं, पहले कभी बात नहीं हुई, मुलाकात नहीं हुई तो फिर इंटेन्‍शन कब और कैसे मिलेंगे। और 6 ग्राम के लिए कॉन्‍शस पजेशन कैसे हो सकता है। उनका तर्क है कि यह संयोग नहीं हो सकता, इसलिए यह एक साजिश है। साजिश का अनुमान से कोई लेना-देना नहीं है। आपको सबूत देने होंगे। दलील नंबर - 4 (कॉन्‍शस पजेशन और कनेक्‍शन) ASG अनिल सिंह: हम ऐसा धारा 28 और 29 के कारण कर रहे हैं। उनका तर्क है कि अरेस्‍ट मेमो में धारा 28 और 29 नहीं है। लेकिन गिरफ्तारी के चार घंटे बाद पहला रिमांड था। पहले रिमांड में भी धारा 28 और 29 है। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने रिमांड देते वक्‍त धारा 28 और 29 पर विचार किया। धारा 37 की कठोरता सिर्फ 28 और 29 की वजह से है। उनका तर्क था कि उनके पास से ड्रग्‍स बरामद नहीं हुए। हो सकता है कि यह आपके पास से नहीं मिला हो, लेकिन फिर पंचनामा देखें। अरबाज के पास से मिला था। मैं अब पंचनामा पढ़ रहा हूं। यहां अरबाज ने अपने जूतों में से ड्रग्‍स निकाला है और एनसीबी अधिकारी को दिया है। कॉन्‍शस पजेशन की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। मुकुल रोहतगी: मैं अब एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दिए गए फैसलों पर आता हूं। नवाज मलिक के फैसले पर आते हैं। यह एक मामला था जहां एक कार थी और तीन लोग थे और ड्रग्‍स ले जा रहे थे। तो फिर वहां निवेदन किया गया था कि यह बरामदगी कॉन्‍शस में नहीं था। अदालत इस बात पर चर्चा करती है कि कॉन्‍शस पजेशन क्या है। फिर वहां बरामदगी का मानक भी वही है जो तथ्यों के आधार पर है। यह केस पूरी तरह से इस मामले पर भी लागू होता है। अरबाज जो ले जा रहे थे, वह उनके पास था, लेकिन आप दूसरों के लिए ऐसा कैसे कहते हैं। ऐसा नहीं है कि वे एक साथ ले जा रहे थे। दलील नंबर -5 (वॉट्सऐप चैट्स) ASG अनिल सिंह: वॉट्सऐप चैट पर विवाद नहीं किया जा सकता, क्‍योंकि हमारे पास 65B में बयान हैं। वॉट्सऐप चैट्स में कई बार ड्रग्‍स का जिक्र है। पेडलर्स और सप्‍लायर से बात है। इसके कई जगहों पर कर्मश‍ियल मात्रा का भी जिक्र है। यह साजिश की ओर इशारा करता है। इसलिए हमने धारा 29 लगाई है। इसकी जांच होनी चाहिए। यह ड्रग्‍स की खुरीद फरोख्‍त का मामला है। इसलिए धारा 37 लागू की गई है। मुकुल रोहतगी: अरेस्‍ट मेमो में मोबाइल फोन की जब्‍ती का जिक्र नहीं है। ऐसे में उसमें से मिले वॉट्सऐप चैट्स मान्‍य नहीं हैं। जिन चैट्स की बात हो रही है वह 2 साल पुराने हैं, उनका क्रूज केस से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ एक चैट्स हैं, जो इस केस से संबंध‍ित हैं, लेकिन वह ऑनलाइन पोकर गेम को लेकर हैं। उन्‍हें ड्रग्‍स से जोड़ना सही नहीं है। हमारे काबिल दोस्‍त की तरफ से चैट्स अदालत को सौंपे नहीं गए हैं, ऐसे में हमारे पास उसकी कॉपी नहीं है। हमारी स्‍थ‍िति हैंडिकैप्‍ड की तरह है। हमें नहीं पता आपके कब्‍जे में क्‍या है और क्‍या नहीं। क्‍योंकि ये कोर्ट के रिकॉर्ड में नहीं है, इसलिए इन पर बहस करना भी सही नहीं है।


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